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Showing posts from March, 2020

यादों का दौर

वो नब्बे का दशक कितना सुहाना था, एक ख़त का ही तो जमाना था। न फेसबुक न व्हाट्सएप, सब तरफ खुशियों को आना था। हाथ में तख़्ती कपडे का बस्ता, कभी ख़ुशी तो कभी मार से स्कूल जाना था। लड़ना,झगड़ना फिर मिल जाना था, वो दोस्ती का मौसम सुहाना था। कहीं चुपके से तकते दो नयन, दिल उन नयनों का दीवाना था। वो नब्बे का दशक कितना सुहाना था, वस एक ख़त का ही तो जमाना था। गली में मिलीं अचानक नज़रें, उन नज़रों को देख भागकर छुप जाना था। वो बचपन वाले खेल में, उसे हर दफ़ा बचाना था। विद्यालय से निकल जब स्कूल में आया था, छोटे से ह्रदय ने जोर का झटका खाया था। देखकर उसको स्कूल में मन हर्षाया था, लगा देखने नयनों को देखकर चैन आया था। चला नही ये सिलसिला ज़्यादा लम्बा, किसी और ने उस पर अपना रौब जमाया था। याद हैं मुझको आज भी, उसके लम्बे केश और किसी को ढूंढते नयन। सोच कर उस दौर को , क्यों ह्रदय हो जाता है बेचैन। जाते-जाते उसने इशारों से बतलाया था, बनोगे कुछ ज़िन्दगी में मुझको समझाया था। कोई कमी अब न बाकी है, ख्याब न कोई है अब अधूरा। फिर भी उसकी यादों का, हर दिन लगता है एक नया सवेरा। व्याकुल होकर मन क

इंसानियत

मंडरा रहा जबकि हमारे सर पर भी मौत का भयानक साया है एक तरफ हाय ! कोरोना के कहर ने , देश में लोगों को रूलाया है । दूसरी ओर इंसानियत के दुश्मनों ने, सर सांपों सा अपना उठायाहै॥  बना रहे तरकीवें नई - नई , बनें अमीरजादे रातों - रात वो कैसे नकली सामान बनाने का, बिन सोचे - समझे कारखाना लगाया है।। समझ उनको नहीं शायद , कि दे रहे किस काम को वे अंजाम । इन्सानियत के दुश्मन बनकर, खिलवाड़ करने का मन बनाया है । । खुदा ने दिया है खुद हमको अवसर, नेकी करके पन्य कमाने का । वाह री इन्सानों की जात ! मौका हाथों से वो भी गंवाया है । । हर तरफखुद की जिंदगी , बचाने की लगी है मुशक्कतों से होड़ । और हमने धर्म - कर्म - सत्कर्मों के आंचल को दागदार बनाया है ।। आखिर क्यूं हमारी इंसानियत यारों ! भरने लगती है पानी । मंडरा रहा जबकि हमारे सर पर भी , मौत का भयानक साया है । । संभल सकते हो तो संभल जाओ , है वक्त अभी भी परीक्षा भरा । नतीजा निकले चाहे कुछ भी , मन को मगर क्यूं न साफ बनाया है।। हमारे हर कर्म की हस्ती पर , सूक्षम निगाह हर पल परमपिता की । जिसने दिया जन्म हम सब को , सारी कायनात को बसाया है । । वो चाहे तो पलक

कहानी स्टूडेंट की

ज़िन्दगी में भारी घमासान है, दुविधा में फंसा ये "मान" है। कहानी स्टूडेंट की लिखने पर ही ध्यान है, स्टूडेंट की ज़िंदगी आज भी बेजान है। न रात नींद में सो पाते, न दिन को खाना खा पाते। दिन गणित से शाम तर्क शक्ति तक पहुंच जाती है, फेल हो जाने पर शादी की धमकी दी जाती है। ज़िन्दगी की पूरी हंसी GK ने चुराई है, इसे दिन रात पढ़ने में ही भलाई है। Antonyms से लेकर, synonyms तक Error ढूंढते हैं। सच बताऊं तो खुद की शक्ल के लिए, बेचारे Mirror ढूंढते हैं। एक औरत भी दूसरे की तरफ, इसारे से रिश्ता समझाती है। ये कैसी Reasoning है भाई, जो भूले रिश्ते भी याद दिलाती है। कहीं नल से टंकी भरी जाती है, तो कहीं दूध में पानी की मिलावट है।  क्या कोई धारा के विपरीत जाता है, या केवल यह दिखावट है। क्या जरुरत थी अंग्रेंजो को भारत आने की, मुहमद गौरी को पृथ्वी राज से भिड़ जाने की। ऐसी भी क्या जरुरत थी, चक्रवृद्धि ब्याज पर कर्ज लेने की। एक ही ट्रैक पर पचास की स्पीड से, दोनों ट्रेनों को आने की। क्या जरुरत थी नौकरी में , जाति के बंटवारे की। दो हज़ार किमी दूर जाकर , लटक कर परीक्षा दे आने

कोरोना

विश्व में महामारी छायी है, कोरोना नाम की कोई बीमारी आयी है। पूरा विश्व इस बीमारी से परेशान है, हजारों लोगों ने गवाई अपनी जान है। सूनी गलियां,सूने रास्ते, खाली खेल के मैदान हैं, जागरूकता ही अब समस्या का समाधान है। घर ही मैदान पिकनिक स्पॉट बनाया है, समझदारी से यही सुझाव सामने आया है। डा० ने कोरोना के कुछ लक्षण को बतलाया है, खाँसी, छींक,जुकाम, तेज़ ज्वर को बताया है। छोटा,बड़ा,अमीर,गरीब सब पर इसकी मार है, एक से दूजे में जाने के लिए कोरोना बेकरार है। कुछ दिन परिवार के साथ घर में बिताइए, समझदारी से कोरोना को देश से भगाइए। अहम,बहम और भ्रम से खुद को बचाना है, पास पड़ोस में प्यार से समझाना है। कोरोना से विश्व की जंग जारी है, वैक्सीन,दवाएं बनाने की तैयारी ही। समय-समय पर सेनेटाइजर से हाथ है धोना, भीड़ वाले इलाके से बचना और बचना। पहले से ही लोगों में थी दिलों की दूरियाँ, अब कैसी फैलाई कोरोना ने ये मजबूरियाँ। कैसा आया बीसबें वर्ष का ये दौर, सचेत होकर करें इस विषय पर गौर। शव-ए-बारात में परिवारों ने जान छुड़ाई है, दुःख की घडी में डॉक्टरों ने हिम्मत दिखाई है। "मान" के

हिन्द की सेना

भारतीय सेना का विश्व में मान सम्मान है। जुड़ सकें सेना से हर युवा का अरमान है। पूरब,पश्चिम,उत्तर,दक्षिण, सभी दिशाओं में ये तैयार है। मेरे देश के युवा को सेना से ही प्यार है। हो सियाचिन की सर्दी चाहें, या राजस्थान की धुलित बयार है। कहीं वसे हैं सूखी मिट्टी में, कहीं भयंकर बारिश की फुहार है। मेरे देश का हर सैनिक सरहद पर तैयार है। जाड़ा,गर्मी,बर्षा सेना पर न इसकी  मार है। मेरे देश का हर सैनिक सभी मौसम में तैयार है। न बहाना छुट्टी का,न ही बुखार है। मेरे देश का सैनिक हर दिन तैयार है। कोई फ़र्क नही पड़ता इनको, चाहें कोई भी त्यौहार है। मेरे देश का सैनिक हर परिस्थिति में तैयार है। चाहें मौसम पतझड़ हो या वसंत बयार है। मेरे देश का हर सैनिक युद्ध के लिए तैयार है। सुख-दुःख सब साथ में बाटें, अब सरहद ही इनका परिवार है। मेरे देश का हर सैनिक देश की सुरक्षा में तैयार है। (मान सिंह कश्यप रामपुर उ०प्र०)

ज़माने के लोग

कोई थोड़ी सी हँस कर बात कर ले, तो औकात दिखा देते हैं लोग। लड़कियाँ कब तक रहें घर में, अपने अंदर छिपे शैतान को दिखा देते हैं लोग। बहुत नाजुक दिल होता है लड़कियों का, लेकिन उससे भी खेल जाते हैं लोग। दोस्ती,इज्ज़त,हंसी इतना ही तो चाहिए इन्हें, इसमें भी दगा दे जाते हैं लोग। चंद दिनों में दिख जाता है चेहरा असली, मौका मिलते ही दरिंदगी दिखा देते हैं लोग। लड़कियों की ज़िंदगी बगीचा समझ, फूल की तरह तोड़ ले जाते हैं लोग। बहुत होशियारी से बातों में फसाते हैं, और सीधे हैवानियत पर आ जाते हैं लोग। कब तक रहेगा चार दिवारी आशियाना उनका, बाहर आते ही अपनी जात दिखा जाते हैं लोग। चाहती हैं चिड़ियों की तरह चहकना, बन बहेलिया जाल में फंसाते हैं लोग। चाहती हैं खुले गगन में उड़ना, लेकिन अरमानों के पंख कतर जाते हैं लोग। चाहती हैं सूर्य और पूनम सी रौशनी, और अमावस्या वाली हरकत कर जाते हैं लोग। कब तक डर कर जियें लड़कियाँ, क्यों अपनी सोच नही बदल पाते हैं लोग। केवल सम्मान की इच्छा रखती हैं लड़कियाँ, वो भी नही दे पाते हैं लोग। (मान सिंह कश्यप रामपुर उत्तर प्रदेश)

(फ़ौजी की कलम से)

कौन सा मुद्दा देश में छाया है, ये कैसा कानून देश में आया है। दिल वाली दिल्ली को जिसने, धूं-धूं कर जलाया है। किसे देश से है भगाना, किसे देश में है बसाना। प्रेम भाव से था देश की जनता को बताना। मर गई इंसानियत मर गया ज़मीर, गरीब सब भटक रहे नेता बने अमीर। एक नए कानून ने आज, देश का दिल जलाया है। जलना था गरीब का चूल्हा, लेकिन अरमानों को जलाया है। ए-ज़ालिमों क्यों जला रहे हो, शहर दिल-ए दिल्ली इतनी। इंसा हो बचा लो इंसानियत उतनी। लोग तो टूट जाते हैं , एक ही आशियाना बनाने में। तुम तरस क्यों नही खाते हो, विद्यालय और बस्तियां जलाने में। क्यों दिलों में मज़हवी आग लगाई है, आज दिल वाली दिल्ली फिर पछताई है। राजनीति रोटी सेंक रहे हैं, मिलकर आज सब नेता। विलायत में भेज दिए हैं, सभी ने अपने बेटी बेटा। देश की जनता आज,  रक्त-पात को तैयार है। क्या यही हमारे देश के, मज़हवी संस्कार है। शाहीन बाग तो बस एक मुद्दा बनाया है, बहाने से दिल्ली का दिल जलाया है। देखकर दिल्ली की दुर्दशा, "मान" अत्यंत घबराया है। शब्दों में ही दुःख की पीड़ा , अपनी कलम से इतनी ही लिख पाया है।।