इंसानियत

मंडरा रहा जबकि हमारे सर पर भी मौत का भयानक साया है
एक तरफ हाय ! कोरोना के कहर ने , देश में लोगों को रूलाया है । दूसरी ओर इंसानियत के दुश्मनों ने, सर सांपों सा अपना उठायाहै॥
 बना रहे तरकीवें नई - नई , बनें अमीरजादे रातों - रात वो कैसे
नकली सामान बनाने का, बिन सोचे - समझे कारखाना लगाया है।।
समझ उनको नहीं शायद , कि दे रहे किस काम को वे अंजाम । इन्सानियत के दुश्मन बनकर, खिलवाड़ करने का मन बनाया है । । खुदा ने दिया है खुद हमको अवसर, नेकी करके पन्य कमाने का । वाह री इन्सानों की जात ! मौका हाथों से वो भी गंवाया है । ।
हर तरफखुद की जिंदगी , बचाने की लगी है मुशक्कतों से होड़ । और हमने धर्म - कर्म - सत्कर्मों के आंचल को दागदार बनाया है ।। आखिर क्यूं हमारी इंसानियत यारों ! भरने लगती है पानी ।
मंडरा रहा जबकि हमारे सर पर भी , मौत का भयानक साया है । । संभल सकते हो तो संभल जाओ , है वक्त अभी भी परीक्षा भरा । नतीजा निकले चाहे कुछ भी , मन को मगर क्यूं न साफ बनाया है।।
हमारे हर कर्म की हस्ती पर , सूक्षम निगाह हर पल परमपिता की । जिसने दिया जन्म हम सब को , सारी कायनात को बसाया है । । वो चाहे तो पलक झपकते ही , जमी - आसमां एक करके रख दे । जिसके सलीके ने सारी दुनिया को , हंसाया और रुलाया है । । करेंगे कब तक हम मनमानियां , छिपी जिसमें सिर्फहै खुदगजी । समझ सके न हाय ! अब तक , ये उसकी कैसी मोह - माया है । । आओ ऊपर उठे इस संकट की घड़ी में , दे साथ नफरतों को भूल कर ।
पापों की गठरी को मिटाने का , वक्त सामने खड़ा मुस्कुराया है । । बहत मुस्तैद हमारा प्रशासन , चौकन्ना , चौबीसों घंटों खड़े हैं कान। निगाहों में अर्जुन की प्रतिछाया , छिप न कोई अभियुक्त पाया है ।। कहें अशोक झिलमिल कविराय , जो डूबा , डूब चुका नेकियों के दरिया में ।
खुदा ने उसकी डोलती नैया को , खद हाथों से पार लगाया है । ।
                                 
                                            - अशोक अरोड़ा , झिलमिल ' ।

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