(फ़ौजी की कलम से)


कौन सा मुद्दा देश में छाया है,
ये कैसा कानून देश में आया है।
दिल वाली दिल्ली को जिसने,
धूं-धूं कर जलाया है।
किसे देश से है भगाना,
किसे देश में है बसाना।
प्रेम भाव से था देश की जनता को बताना।
मर गई इंसानियत मर गया ज़मीर,
गरीब सब भटक रहे नेता बने अमीर।
एक नए कानून ने आज,
देश का दिल जलाया है।
जलना था गरीब का चूल्हा,
लेकिन अरमानों को जलाया है।
ए-ज़ालिमों क्यों जला रहे हो,
शहर दिल-ए दिल्ली इतनी।
इंसा हो बचा लो इंसानियत उतनी।
लोग तो टूट जाते हैं ,
एक ही आशियाना बनाने में।
तुम तरस क्यों नही खाते हो,
विद्यालय और बस्तियां जलाने में।
क्यों दिलों में मज़हवी आग लगाई है,
आज दिल वाली दिल्ली फिर पछताई है।
राजनीति रोटी सेंक रहे हैं,
मिलकर आज सब नेता।
विलायत में भेज दिए हैं,
सभी ने अपने बेटी बेटा।
देश की जनता आज,
 रक्त-पात को तैयार है।
क्या यही हमारे देश के,
मज़हवी संस्कार है।
शाहीन बाग तो बस एक मुद्दा बनाया है,
बहाने से दिल्ली का दिल जलाया है।
देखकर दिल्ली की दुर्दशा,
"मान" अत्यंत घबराया है।
शब्दों में ही दुःख की पीड़ा ,
अपनी कलम से इतनी ही लिख पाया है।।

                                                 Man singh kashyap

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