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Showing posts from June, 2020

बेटियाँ

ज़िम्मेदारी के बोझ तले, दब रही हैं आजकल बेटियाँ। नम आँखों से फ़ोन पर, पीहर में हँसकर बात करती हैं बेटियाँ। हुआ करती थीं कभी माँ-बापू की जान, आज अकेले ही सब दुःख सहती हैं बेटियाँ। मन पीहर में शरीर ससुराल में, ये कभी जताती नही हैं बेटियाँ। पीहर आने के लिए , आजकल कितनी तरसती हैं बेटियाँ। घर गृहस्थी बसाने में ही, दिन रात लगी रहती हैं बेटियाँ। ससुराल की सभी परेशानी, Similar poem https://kavitaunsune.blogspot.com/2020/05/blog-post_21.html क्यों चुपचाप सहती हैं बेटियाँ। क्यों अपनी इच्छाओं का गला घोटकर, संस्कारी बन जाती हैं बेटियाँ। कभी बेटों को भी सिखाओ संस्कार, मान मर्यादा के लिए जान गवाती हैं बेटियाँ। कर लेते हैं मस्ती और पार्टी बेटे, घर से भर क़दम भी नही रखती हैं बेटियाँ। दिन में आराम कर लेते हैं बेटे, दो मिनट सुस्ताती भी नही हैं बेटियाँ। पीहर में कुछ हो जाए तो, सब कुछ छोड़ घर आती हैं बेटियाँ। अफ़सोस! कितना कुछ सह कर, चुपचाप दुनिया से चली जाती हैं बेटियाँ।

करोना वायरस पर दमदार कविता

जनवरी बीता खुशियों में, फरबरी में खुमारी छाई। मार्च बीता डर-डर कर, अप्रैल में लॉक डाउन की बारी आई। कोरोना ने देश में तबाही मचाई, घर में रहने से लोगों में उम्मीद जगाई। मई में कोरोना ने गति बढ़ाई, फिर अम्फान तूफ़ान ने तबाही मचाई। जून में अनलॉक वन आया, साथ में निसर्ग तूफ़ान लाया। जुलाई में शायद मिले कुछ आज़ादी, अन्न की न करना अब बर्बादी। More poems on corona virus https://kavitaunsune.blogspot.com/2020/05/blog-post_20.html अगस्त में भाई बहन होंगे साथ, होंगे बहन भाई के हाथों में हाथ। सितम्बर तक भाग जाए कोरोना शैतान, फिर शायद ज़िन्दगी हो जाए कुछ आसान। अक्टूबर करेंगे कोरोना वारियर्स को समर्पित, देश के सभी योद्धाओं को अर्पित। नवम्बर में हम सब फिर होंगे साथ, मिलकर दीपक जलाएंगे दिवाली की रात। दिसम्बर में करेंगे ईश्वर से प्राथना, आए न कोई भी वर्ष फिर ऐसा अपना। (मान सिंह कश्यप रामपुर उ०प्र०)

पर्यावरण सन्देश

जन-जन तक सन्देश फैलाएं मिलकर हम सब पर्यावरण बचाएं मिलकर सब एक कदम उठाएं वाहनों पर अंकुश लगाएं एक सुन्दर सा देश बनाएं कट रहे हैं जंगल वन शिथिल पड़ गया है मानव मन ज़हरीली हो गई हैं फिजाएं मिलकर हम सब पर्यावरण बचाएं प्लास्टिक का उपयोग छोंड़ दें सब पैदल की ओर रुख मोड़ दें सब हवा चाहिए सबको शुद्ध इसके लिए आपस में करते हैं युद्ध वृक्ष न कोई लगायेगा लेकिन मीठे फल पहले खायेगा चलो शरीर को स्वास्थ्य बनाएं जन-जन तक एक संदेश फैलाएं पुष्प सभी के मन को भाते हैं फिर भी मनुष्य पेड़ नही लगाते हैं ऐसे ही जल को व्यर्थ गवांओगे एक दिन जल के लिए तरस जाओगे हाथी जैसे जानवर को बारूद तुम खिलाओगे एक दिन फिर तुम भी जानवर बन जाओगे हम सब प्रकृति का सम्मान करें पर्यावरण का मिलकर अब ध्यान करें जन-जन तक एक सन्देश फैलाएं मिलकर हम सब पर्यावरण बचाएं (मान सिंह कश्यप रामपुर उ०प्र०)