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QUIZ FOR NET EXAM PAPER 1

यदि आप भविष्य में नेट का पेपर देना चाहते हैं तो उसके लिए आपको रोजाना क्विज देना पड़ेगा और डिटेल में हर कांसेप्ट को पढ़ना पड़ेगा इसके लिए आपको हम 1 चैनल का नाम बताने जा रहे हैं जो आपको क्विज देकर आप की प्रैक्टिस को और मजबूत कर देगा तो यदि आप क्विज देने में इच्छुक है तो चैनल में जाकर क्विज रोजाना दें और अपनी प्रगति को देखें  https://t.me/nta_net_Jrf_paper1 और पेपर 2 कामर्स की की तैयारी करना चाहते हैं तो हम आपको एक और चैनल का नाम बताने जा रहे हैं जिसम जाकर आप रोजाना प्रश्न का लाभ उठा सकते हैं और साथ-साथ अन्य लोगों से उनकी राय ले सकते हैं। https://t.me/CommerceTargetJRF यदि आप किसी और सरकारी पेपर से संबंधित टेलीग्राम पर चैनल का नाम जानना चाहते हैं तो हमें कमेंट में बताएं हम आपको सबसे श्रेष्ठ चैनल का नाम जल्द बताने की कोशिश करेंगे

Five sentences about cow// five lines on my cow

1. I have a cow. 2. It has two eyes. 3. It has a long tail. 4. It likes to eat green grass. 5. I like its milk.

हाँ मैं भी किसान हूँ

हाँ मैं भी किसान हूँ हाँ मै भी किसान हूँ धरा का सीना चीर बीज बोता हूँ पूस की रातों में खेतों पर मैं सोता हूँ फसलों को अपनी मैं कीट और जानवरों से बचाता हूँ मई,जून की धूप अगस्त की बरखा सब आसानी से सहता हूँ लेकिन हर बार सियासत में क्यों मुज़रिम बन जाता हूँ रोटी,कपड़ा,मकां को किसान होकर भी तरस जाता हूँ आज का युवा किसान शहरों की ओर रुख मोड़ गया लहलहाती फसलों की भूमि को बंजर बना कर छोड़ गया बापस लाकर उन्हें शहर से हरियाली वही चाहता हूँ नई तकनीक से अब मैं भी फसलें खूब उगाता हूँ लेकिन कृषि कानून से मैं भी बहुत परेशान हूँ कहने को छोटा ही सही हाँ मैं भी एक किसान हूँ अन्नदाता कहकर अब हमसे दाना छीन रहे आने वाली नस्लों का क्यों खेती से मुख मोड़ रहे दिखाकर तानाशाही क्यों किसानों का गला दबाया है देखकर कृषि कानून किसान खून के आंसू रोया है देश में लूट जैसी योजनाओं से मैं भी क्या अन्जान हूँ अधिकार अपना लेकर रहेंगे हाँ मैं भी एक किसान हूँ

पड़ाव मिलेगा

जब तक चलेंगी ज़िन्दगी की सांसे, कहीं प्यार कहीं टकराव मिलेगा। कहीं बनेंगे सम्बन्ध अंतर्मन से तो, कहीं आत्मीयता का आभाव मिलेगा। कहीं मिलेगी ज़िन्दगी में प्रशंसा तो, कहीं नाराजगियों का व्यवहार मिलेगा। कहीं मिलेगी सच्चे मन से दुआ तो, कहीं भावनाओं में दुर्भाव मिलेगा। कहीं बनेगें पराए रिश्ते भी अपने तो, कहीं अपनों से ही खिंचाव मिलेगा। कहीं होंगी खुशामदें चेहरे पर तो, कहीं पीठ पर बुराई का घाव मिलेगा। तू चला चल राही अपने कर्म पथ पर, जैसा तेरा भाव वैसा प्रभाव मिलेगा। रख स्वभाव में शुद्धता का 'स्पर्श' तू, अवश्य ज़िन्दगी का पड़ाव मिलेगा।

जिंदगी

जिंदगी में हर कठिनाई को सहना पड़ता है, जिस हाल में हैं उसी हाल में रहना पड़ता है। ये ज़िन्दगी बरसात के पानी की तरह है, जिसे वक्त के बहाव के साथ बहना पड़ता है। चाहें कितने ही बुलंद हो इरादे, एक दिन उन्हें भी डगमगाना पड़ता है। दिल के संमन्दर में जब इश्क उठने लगे, तब शर्म के पल्ले को भी हटाना पड़ता है। चाहें कितनी भी धन दौलत हो पास, एक दिन उसे छोंड़ इस जहां से जाना पड़ता है। कितना भी दिल का कठोर हो इंसा, उसके आसुंओं को आंख से बह जाना पड़ता है। कितना भी ज्ञानी हो कोई आज के जमाने में, उसे भी जीवन पर्यंत सीखना पड़ता है।

परंपराएं क्या सही होती है

परंपराएं मनुष्यों का मनुष्यो पर विश्वास तब होता है जब परंपराओं का वहन किया जाता है। परंपराएं परंपराएं आम के फल की भांति होती है जन्म के समय सबको कड़वी लगती है । कुछ समय बाद खट्टा स्वाद देता है जिससे खटाई प्रिय हो वह उसका स्वीकार कर लेता है और फिर कुछ समय पश्चात वहीं फल सबको मधुर लगने लगता है और सबका प्रिय बन जाता है किंतु एक समय आने के बाद वह गल जाता है उसमें से दुर्गंध आने लगती है खाने वाले को रोग लग जाता है और अंत में रह जाती है सुखी गुठली। और वह फल की सूखी गुठली किसी के काम नहीं आता। मुझे परंपराओं से कोई विरोध नहीं है किंतु परंपराएं जब शोषण का कारण बन जाए , सुख के बदले दुख देने लगे तो उस परंपरा को भूमि में गाड़कर नई परंपरा को जन्म देना ही होता है। अब कौन सी परंपरा सही है और कौन सी परंपरा गलत यह निश्चित कौन करता है आप या मैं? जी नहीं !! समय निश्चित करता है और समय का विधान सब को मानना पड़ता है और समय के इस चक्र में आप किस पक्ष में होंगे इसका निर्णय आपको करना है । क्योंकि समय की चक्की में सब पीस जाते हैं। अधर्म के मार्ग पर चलने वाले इस परिवर्तन का आरंभ करते हैं और धर्म के

बेटियाँ

ज़िम्मेदारी के बोझ तले, दब रही हैं आजकल बेटियाँ। नम आँखों से फ़ोन पर, पीहर में हँसकर बात करती हैं बेटियाँ। हुआ करती थीं कभी माँ-बापू की जान, आज अकेले ही सब दुःख सहती हैं बेटियाँ। मन पीहर में शरीर ससुराल में, ये कभी जताती नही हैं बेटियाँ। पीहर आने के लिए , आजकल कितनी तरसती हैं बेटियाँ। घर गृहस्थी बसाने में ही, दिन रात लगी रहती हैं बेटियाँ। ससुराल की सभी परेशानी, Similar poem https://kavitaunsune.blogspot.com/2020/05/blog-post_21.html क्यों चुपचाप सहती हैं बेटियाँ। क्यों अपनी इच्छाओं का गला घोटकर, संस्कारी बन जाती हैं बेटियाँ। कभी बेटों को भी सिखाओ संस्कार, मान मर्यादा के लिए जान गवाती हैं बेटियाँ। कर लेते हैं मस्ती और पार्टी बेटे, घर से भर क़दम भी नही रखती हैं बेटियाँ। दिन में आराम कर लेते हैं बेटे, दो मिनट सुस्ताती भी नही हैं बेटियाँ। पीहर में कुछ हो जाए तो, सब कुछ छोड़ घर आती हैं बेटियाँ। अफ़सोस! कितना कुछ सह कर, चुपचाप दुनिया से चली जाती हैं बेटियाँ।