दिल की बात
अगले जन्म तुम मेरी बनना,
इस आस में जीवन बीत रहा।
अपने मन को मारकर,
हृदय नए सपनों को सींच रहा।
गुज़र रहा है जीवन अब तो,
बस दूर से प्रीत निभाने में।
अपने सपनों में हर दिन तेरा,
सुन्दर प्रतिबिम्ब बनाने में।
मेरा हृदय अब मुझसे ही,
मुझको है अब जीत रहा।
अगले जन्म तुम मेरी बनना,
इस आस में जीवन बीत रहा।
न मुझको दुःख किसी बात का होगा,
उम्मीदों ने मुझको सर्व दिया।
शब्द दिए मुझको कविता के,
और तुम्हारे जैसा पर्व दिया।
मोह की धुन में मन बावरा बस,
गीत प्रेम के गुनगुनाता रहा।
अगले जन्म तुम मेरी बनना,
इस आस में जीवन बीत रहा।
क्या समझेंगे लोग यहाँ के,
फ़ौजी दिल की बातों को।
रातों से लंबे दिन लगते हैं,
और जिम्मेदारी की रातों को।
स्मृति में तुम्हारी ये मन मेरा,
दिन रात की ड्यूटी सींच रहा।
अगले जन्म तुम मेरी बनना,
इस आस में जीवन बीत रहा।
कभी तो सुनेगा कोई हमारी ,
मुझको है ये आस बहुत।
धीरे-धीरे अब जान निकलती,
आती नही अब सांस बहुत।
अपना था लक्ष्य एक,
कोई और हमसे जीत रहा।
अगले जन्म तुम मेरी बनना,
इस आस में जीवन बीत रहा।
(सेना शिक्षा अनुदेशक मान सिंह कश्यप रामपुर उ०प्र०)
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