इस तरह लाचार बैठे हैं



 न पूछो कौन हैं , क्यों इस कदर ग़मखार बैठे हैं ।
दुखी हैं दुख के मारे इस तरह लाचार बैठे हैं ।।
 वह जो कहते हैं सुन कर बात उनकी हां जी हां कहिए ।
सच्ची बात मत कहना बडी़ सरकार बैठे हैं ।।
दुकानें , कारखाने हो रहे हैं बंद देखो तो ।
सभी कहते हैं अब धंधा नहीं बेकार बैठे हैं ।।
 वह कहते हैं कि जो भी जी में आए शौक से कहिए ।
भला किस बात का डर है जो चौकीदार बैठे हैं ।।
 वह फरमाते हैं हम जैसा नहीं कोई अक्ल वाला ।
 बाकी जितने भी हैं सब के सब गंवार बैठे हैं ।।
इकोनॉमी तो है इस देश की अब आई . सी . यू . में ।
दवा देनी थी जिन्होंने वह खुद बीमार बैठे हैं ।।
वजा़रत की तरफ देखो नमूने ही नमूने हैं ।
कर्ता - धर्ता तो इसके सिर्फ दो - चार बैठे हैं ।।
झांसा, झठ , जुमला बस सिर्फ आधार है अपना ।
इसी के चलते हम हर बार बाजी मार बैठे हैं ।।
कभी करते हैं यह वादा कभी करते हैं वह वादा । 
झूठे वादे सुन - सुन कर सभी बेजा़र बैठे हैं ।।
                                                 - शाम दास खन्ना

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