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आज सारा भारत !! ``नेताजी सुभाष चंद्र बोस `` को करता है तहेदिल नमन

वर्षों पूर्व जिन्होंने देश की आजादी का सपना सजाया था। अंग्रेजी हुकूमत का तख्ता हिलाने के लिए, जो आगे आया था ।। वो सच्चा देशभक्त, राष्ट्रवादी बना, नाम अपना अमर कर गए । उन क्रांतिकारियों में सबसे ऊपर, एक ऐसा नाम आया था।। जाने गए स्वतंत्रता संग्राम की अग्रणी अनोखे किरदार वे।  रख कर जान हथेली पर दोस्तों!! देश की रक्षा का मन बनाया था।।  भूखे प्यासे रह कर भिड़ गए जो, अधियारों में तूफानॊ से।  ऐसे वीरों ने सांसे रोक कर, देश को आजाद कराया था।।  नाम था नेताजी सुभाष चंद्र बोस ,जन्मे जो वह 23 जनवरी 18 सो 97 को।  जवानी की दहलीज पर कदम रखते, खून- ए ज़गीर नारा लगाया था।। कहां युवाओं क्रांतिकारियों से तुम मुझे खून दो,दूंगा मैं आजादी तुम्हें।  सुनकर जोशीला नारा हर एक अंग्रेजी शासक थर्राया था।। कि स्थापना जब आजाद हिंद फौज की, पड़ा गश अंग्रेजों को ।द्वितीय विश्व युद्ध की बेला थी, जापान में सहयोगी हाथ बढ़ाया था।। जय हिंद !!जय हिंद!! जय हिंद!! नारा बना प्रतीक राष्ट्र का । जिसने फूंका बल लाखों बाजुओ में, दुश्मन देख घबराया था।।  सन 1944 में किया हिंद फौज ने दो बार अंग्रेजों पर आक्रमण।पीछे हटी

एक ज़माना

एक जमाना वह था जब हम आग माँग कर लाते थे । उसी आग को फूंक - फूंक कर , घर की आग जलाते थे।। पढने के लिए दीपक था सहारा ,कभी लालटेन जलाते थे। उसकी बत्ती घुमा - घुमा कर , मुश्किल से काम चलाते थे।। गेहूँ की रोटी बड़ी चीज़ थी , बडे़ बुजुर्ग ही खाते थे। दाल भात मेहमान नवाजी , बाकी सब दलिया खाते थे।। बथुआ सरसों और पालक , यही तो गाँव में होता था। दूध, दही और छाज , हर घर में तब मिलता था ।। मक्के की रोटी पूड़ी की दावत, बडे़ दिनों में बनती थी।  धान का भात , देशी घी और धनिये की चटनी बनती थी।। स्कूल से आकर खाना खाकर , फिर गाय भैस चराते थे। साँझ को माँ बाबू जी के साथ, घास काटकर लाते थे ।। कितनी खुशी रहती भी हमको पापा के साथ बाजार जाने की ।पकौड़ी , आलू चाट और जलेबी खाने की ।। दूर बसे हैं अपने अब आसानी से घर जा भी नही सकते है।  घर और मित्रों की यादों  बस, अब के बल आखं भिगो सकते हैं।।                                                                        ~ मान सिंह

इस तरह लाचार बैठे हैं

 न पूछो कौन हैं , क्यों इस कदर ग़मखार बैठे हैं । दुखी हैं दुख के मारे इस तरह लाचार बैठे हैं ।।  वह जो कहते हैं सुन कर बात उनकी हां जी हां कहिए । सच्ची बात मत कहना बडी़ सरकार बैठे हैं ।। दुकानें , कारखाने हो रहे हैं बंद देखो तो । सभी कहते हैं अब धंधा नहीं बेकार बैठे हैं ।।  वह कहते हैं कि जो भी जी में आए शौक से कहिए । भला किस बात का डर है जो चौकीदार बैठे हैं ।।  वह फरमाते हैं हम जैसा नहीं कोई अक्ल वाला ।  बाकी जितने भी हैं सब के सब गंवार बैठे हैं ।। इकोनॉमी तो है इस देश की अब आई . सी . यू . में । दवा देनी थी जिन्होंने वह खुद बीमार बैठे हैं ।। वजा़रत की तरफ देखो नमूने ही नमूने हैं । कर्ता - धर्ता तो इसके सिर्फ दो - चार बैठे हैं ।। झांसा, झठ , जुमला बस सिर्फ आधार है अपना । इसी के चलते हम हर बार बाजी मार बैठे हैं ।। कभी करते हैं यह वादा कभी करते हैं वह वादा ।  झूठे वादे सुन - सुन कर सभी बेजा़र बैठे हैं ।।                                                  - शाम दास खन्ना