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हाँ मैं भी किसान हूँ

हाँ मैं भी किसान हूँ हाँ मै भी किसान हूँ धरा का सीना चीर बीज बोता हूँ पूस की रातों में खेतों पर मैं सोता हूँ फसलों को अपनी मैं कीट और जानवरों से बचाता हूँ मई,जून की धूप अगस्त की बरखा सब आसानी से सहता हूँ लेकिन हर बार सियासत में क्यों मुज़रिम बन जाता हूँ रोटी,कपड़ा,मकां को किसान होकर भी तरस जाता हूँ आज का युवा किसान शहरों की ओर रुख मोड़ गया लहलहाती फसलों की भूमि को बंजर बना कर छोड़ गया बापस लाकर उन्हें शहर से हरियाली वही चाहता हूँ नई तकनीक से अब मैं भी फसलें खूब उगाता हूँ लेकिन कृषि कानून से मैं भी बहुत परेशान हूँ कहने को छोटा ही सही हाँ मैं भी एक किसान हूँ अन्नदाता कहकर अब हमसे दाना छीन रहे आने वाली नस्लों का क्यों खेती से मुख मोड़ रहे दिखाकर तानाशाही क्यों किसानों का गला दबाया है देखकर कृषि कानून किसान खून के आंसू रोया है देश में लूट जैसी योजनाओं से मैं भी क्या अन्जान हूँ अधिकार अपना लेकर रहेंगे हाँ मैं भी एक किसान हूँ