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परंपराएं क्या सही होती है

परंपराएं मनुष्यों का मनुष्यो पर विश्वास तब होता है जब परंपराओं का वहन किया जाता है। परंपराएं परंपराएं आम के फल की भांति होती है जन्म के समय सबको कड़वी लगती है । कुछ समय बाद खट्टा स्वाद देता है जिससे खटाई प्रिय हो वह उसका स्वीकार कर लेता है और फिर कुछ समय पश्चात वहीं फल सबको मधुर लगने लगता है और सबका प्रिय बन जाता है किंतु एक समय आने के बाद वह गल जाता है उसमें से दुर्गंध आने लगती है खाने वाले को रोग लग जाता है और अंत में रह जाती है सुखी गुठली। और वह फल की सूखी गुठली किसी के काम नहीं आता। मुझे परंपराओं से कोई विरोध नहीं है किंतु परंपराएं जब शोषण का कारण बन जाए , सुख के बदले दुख देने लगे तो उस परंपरा को भूमि में गाड़कर नई परंपरा को जन्म देना ही होता है। अब कौन सी परंपरा सही है और कौन सी परंपरा गलत यह निश्चित कौन करता है आप या मैं? जी नहीं !! समय निश्चित करता है और समय का विधान सब को मानना पड़ता है और समय के इस चक्र में आप किस पक्ष में होंगे इसका निर्णय आपको करना है । क्योंकि समय की चक्की में सब पीस जाते हैं। अधर्म के मार्ग पर चलने वाले इस परिवर्तन का आरंभ करते हैं और धर्म के